जुस्तजू Poetry (page 10)
कोई हो चेहरा शनासा दिखाई देता है
एजाज़ उबैद
नज़र फ़रेब-ए-क़ज़ा खा गई तो क्या होगा
एहसान दानिश
आइने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
दिनेश ठाकुर
'आज़र' रहा है तेशा मिरे ख़ानदान में
दिलावर अली आज़र
कश्तियाँ मंजधार में हैं नाख़ुदा कोई नहीं
देवमणि पांडेय
मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
रंज की जब गुफ़्तुगू होने लगी
दाग़ देहलवी
मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो
दाग़ देहलवी
हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से
दाग़ देहलवी
हर इक इम्कान तक पस्पाई है अपनी
चंद्र प्रकाश शाद
मंज़रों के दरमियाँ मंज़र बनाना चाहिए
बुशरा एजाज़
ख़ुद को तमाशा ख़ूब बनाता रहा हूँ मैं
बबल्स होरा सबा
होती नहीं रसाई-ए-बर्क़-ए-तपाँ कहाँ
ब्रहमा नन्द जलीस
किस ने कहा किसी का कहा तुम किया करो
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
क्या गिला इस का जो मेरा दिल गया
बेदम शाह वारसी
कभी यहाँ लिए हुए कभी वहाँ लिए हुए
बेदम शाह वारसी
ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है
बेबाक भोजपुरी
उन का बर्बाद-ए-करम कहने के क़ाबिल हो गया
बासित भोपाली
दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत
बासिर सुल्तान काज़मी
रुख़ तुम्हारा हो जिधर हम भी उधर हो जाएँगे
बशीर महताब
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
बशीर बद्र
इक बे-सबात अक्स बना बे-निशाँ गया
बशीर अहमद बशीर
नई जुस्तुजू का अलमिया
बाक़र मेहदी
धरती का बोझ
बाक़र मेहदी
अलविदा'अ
बाक़र मेहदी
दो क़दम साथ क्या चला रस्ता
बलवान सिंह आज़र
सर्द, तारीक रात
बलराज कोमल
समाअ'त के लिए इक इम्तिहाँ है
बकुल देव
देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है
ज़फ़र
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