जुस्तजू Poetry (page 9)

ज़बाँ साकित हो क़त-ए-गुफ़्तुगू हो

ग़ुबार भट्टी

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा

ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

ग़ालिब

ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स

ग़ालिब

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव

ग़ालिब

है तलाश-ए-दो-जहाँ लेकिन ख़बर अपनी किसे

जोर्ज पेश शोर

दिल में अपने आरज़ू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं

जोर्ज पेश शोर

मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था

गौहर होशियारपुरी

तिरी जुस्तुजू में देखा मैं कहाँ कहाँ से गुज़रा

फ़िगार मुरादाबादी

न सनम-कदों की है जुस्तुजू न ख़ुदा के घर की तलाश है

फ़ाज़िल अंसारी

उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे

फ़व्वाद अहमद

महकते लफ़्ज़ों में शामिल है रंग-ओ-बू किस की

फ़ारूक़ बख़्शी

परिंदे खेत में अब तक पड़ाव डाले हैं

फ़ारूक़ अंजुम

जब भी मिला वो टूट के हम से मिला तो है

फ़ारूक़ अंजुम

मचलती है मिरे सीने में तेरी आरज़ू क्या क्या

फ़रोग़ हैदराबादी

दिल नहीं मिलने का फिर मेरा सितमगर टूट कर

फ़रोग़ हैदराबादी

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं हैं वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं है वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

देख कर उस हसीन पैकर को

फ़ारिग़ बुख़ारी

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

था पा-शिकस्ता आँख मगर देखती तो थी

फ़रहत क़ादरी

हम से मिल कर कोई गुफ़्तुगू कीजिए

फ़रहत अब्बास

जब भी शम-ए-तरब जलाई है

फ़रीद जावेद

हर घड़ी इंक़लाब में गुज़री

फ़ानी बदायुनी

आप से शरह-ए-आरज़ू तो करें

फ़ानी बदायुनी

वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है

फ़ना बुलंदशहरी

मक़ाम-ए-होश से गुज़रा मकाँ से ला-मकाँ पहुँचा

फ़ना बुलंदशहरी

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुक़ाबला-ए-हुस्न

फ़हमीदा रियाज़

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