जुस्तजू Poetry (page 8)

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

हसन नईम

ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी

हसन नईम

ख़ुद को पाने की जुस्तुजू है वही

हसन आबिद

जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास

हरी चंद अख़्तर

अब किस की जुस्तुजू हो तिरी जुस्तुजू के बा'द

हक़ीर जहानी

जो इस ज़मीं से कभी फिर नुमू करूँगा मैं

हनीफ़ नज्मी

मिले वो लम्हा जिसे अपना कह सकें 'कैफ़ी'

हनीफ़ कैफ़ी

हर इक कमाल को देखा जो हम ने रू ब-ज़वाल

हनीफ़ कैफ़ी

मैं जो अपने हाल से कट गया तो कई ज़मानों में बट गया

हनीफ़ असअदी

मंज़िल कहाँ है दूर तलक रास्ते हैं यार

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

जब्र बे-चारगी के मारों में

हामिद हुसैन हामिद

मिरी तरह से मह-ओ-महर भी हैं आवारा

हैदर अली आतिश

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

हैदर अली आतिश

इस शश-जिहत में ख़ूब तिरी जुस्तुजू करें

हैदर अली आतिश

ज़माने का भरोसा क्या अभी कुछ है अभी कुछ है

हफ़ीज़ जौनपुरी

उन को जिगर की जुस्तुजू उन की नज़र को क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

अब कोई आरज़ू नहीं शौक़-ए-पयाम के सिवा

हफ़ीज़ होशियारपुरी

मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार

गुलज़ार

बीते रिश्ते तलाश करती है

गुलज़ार

शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई

गुलनार आफ़रीन

तू सरहद-ए-ख़याल से आगे गुज़र गया

गुलाम जीलानी असग़र

जफ़ा-ए-दिल-शिकन

ग़ुलाम दस्तगीर मुबीन

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है

ग़ुलाम मौला क़लक़

ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

क़र्या-ए-हैरत में दिल का मुस्तक़र इक ख़्वाब है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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