काम Poetry (page 54)

बाग़ क्या क्या शजर दिखाते हैं

अफ़ज़ाल नवेद

मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'

अफ़ज़ल गौहर राव

मैं अपनी ज़ात में जब से सितारा होने लगा

अफ़ज़ल गौहर राव

मुश्किल था बहुत मेरे लिए तर्क-ए-तअल्लुक़

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

कर भी लूँ अगर ख़्वाब की ताबीर कोई और

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

इस तरह सताया है परेशान किया है

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

ग़म का मौसम बीत गया सो रोना क्या

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

तलाश-ए-क़ाफ़िया में उम्र सब गुज़ारी है

आफ़ताब शम्सी

देर तक रात अँधेरे में जो मैं ने देखा

आफ़ताब शम्सी

पाता नहीं हूँ और किसी काम से लज़्ज़त

आफ़ताब शाह आलम सानी

कल का वादा न करो दिल मिरा बेकल न करो

आफ़ताब शाह आलम सानी

आजिज़ हूँ तिरे हाथ से क्या काम करूँ मैं

आफ़ताब शाह आलम सानी

वो इत्र-ए-ख़ाक अब कहाँ पानी की बास में

आफ़ताब इक़बाल शमीम

किसी तरह भी तो वो राह पर नहीं आया

आफ़ताब हुसैन

किसी नज़र ने मुझे जाम पर लगाया हुआ है

आफ़ताब हुसैन

कमी रखता हूँ अपने काम की तकमील में

आफ़ताब हुसैन

देखे कोई तअल्लुक़-ए-ख़ातिर के रंग भी

आफ़ताब हुसैन

तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो

अफ़सर इलाहाबादी

कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं

अफ़सर इलाहाबादी

हरीम-ए-दिल से निकल आँख के सराब में आ

अफ़ीफ़ सिराज

हुआ ख़त्म दरिया तो सहरा लगा

आदिल मंसूरी

गाँठी है उस ने दोस्ती इक पेश-इमाम से

आदिल मंसूरी

दुम

आदिल लखनवी

उस को जब कि मिरे अंजाम से कुछ काम नहीं

अदील ज़ैदी

जहान-ए-इल्म का बाब-ए-निसाब होते हुए

अदील ज़ैदी

एक हो जाएँ तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

नई सुब्ह चाहते हैं नई शाम चाहते हैं

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

नक़्श-ए-यक़ीं तिरा वजूद-ए-वहम बुझा गुमाँ बुझा

अबुल हसनात हक़्क़ी

तेग़-ए-जफ़ा को तेरी नहीं इम्तिहाँ से रब्त

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती

अबु मोहम्मद वासिल

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