कमाल Poetry (page 2)

वो इस कमाल से खेला था इश्क़ की बाज़ी

ताजदार आदिल

तिलिस्म-ए-इश्क़ था सब उस का साथ होने तक

ताजदार आदिल

खिड़की में एक नार जो महव-ए-ख़याल है

ताज सईद

उतार लफ़्ज़ों का इक ज़ख़ीरा ग़ज़ल को ताज़ा ख़याल दे दे

तैमूर हसन

उतार लफ़्ज़ों का इक ज़ख़ीरा ग़ज़ल को ताज़ा ख़याल दे दे

तैमूर हसन

हिज्र बख़्शा कभी विसाल दिया

तैमूर हसन

ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था

ताहिरा जबीन तारा

इक अनोखी रस्म को ज़िंदा रखा है

ताहिर अज़ीम

बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे

ताहिर अज़ीम

अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था

ताबिश कमाल

वो इंतिहा के हैं नाज़ुक मैं सख़्त-जाँ हूँ कमाल

तअशशुक़ लखनवी

ये ज़ाद-ए-राह हमेशा सफ़र में रख लेना

सय्यद शकील दस्नवी

रिवाज-ओ-रस्म का उस को हुनर भी आता है

सय्यद मुनीर

मलाल होते हुए दिल पे कुछ मलाल नहीं

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

ऐब्स्ट्रैक्ट आर्ट

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

हो गया पाएमाल आँखों में

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

वो जहाँ हैं वहीं ख़याल मिरा

स्वप्निल तिवारी

सदियों का दर्द मेरे कलेजे में पाल कर

सूरज नारायण

अब तो दिल ओ दिमाग़ में कोई ख़याल भी नहीं

सुनील कुमार जश्न

आइनों में अक्स बिन कर जिन के पैकर आ गए

सुलतान निज़ामी

जो कुछ हुआ सो हुआ अब सवाल ही क्या है

सुहा मुजद्ददी

तहक़ीक़ की नज़र सीं आख़िर कूँ हम ने देखा

सिराज औरंगाबादी

तुझ पर फ़िदा हैं सारे हुस्न-ओ-जमाल वाले

सिराज औरंगाबादी

भरा कमाल-ए-वफ़ा सें ख़याल का शीशा

सिराज औरंगाबादी

हज़ार नक़्स हैं मुझ में मिरे कमाल को देख

सिकंदर अली वज्द

सफ़र के बीच वो बोला कि अपने घर जाऊँ

सिदरा सहर इमरान

वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था

सिद्दीक़ मुजीबी

निकाल लाया है घर से ख़याल का क्या हो

सिद्दीक़ शाहिद

दिल सख़्त निढाल हो गया है

शोहरत बुख़ारी

कभी वो रंज के साँचे में ढाल देता है

शोभा कुक्कल

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