कारवां Poetry (page 5)

वफ़ा-ओ-मेहर-ओ-अल्ताफ़-ओ-करम थे हम-इनाँ क्या क्या

साजिदा ज़ैदी

हिजाबात उठ रहे हैं दरमियाँ से

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं

सैफ़ुद्दीन सैफ़

जब वज्ह-ए-सुकून-ए-जाँ ठहर जाए

सैफ़ुद्दीन सैफ़

चकले

साहिर लुधियानवी

बहुत घुटन है

साहिर लुधियानवी

बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले

साहिर लुधियानवी

ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा

साग़र सिद्दीक़ी

जज़्बा-ए-सोज़-ए-तलब को बे-कराँ करते चलो

साग़र सिद्दीक़ी

पस-ए-रौशनी

साग़र ख़य्यामी

रस्ते लपेट कर सभी मंज़िल पे लाए हैं

सईद नक़वी

यूँ तो हर एक शख़्स ही तालिब समर का है

सादिक़ नसीम

अपनी आँखों से तो दरिया भी सराब-आसा मिले

सादिक़ नसीम

सितारे सो गए तो आसमाँ कैसा लगेगा

साबिर ज़फ़र

जहाँ में जिस की शोहरत कू-ब-कू है

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं

सबा अकबराबादी

होश-ओ-ख़िरद से दूर हूँ सूद-ओ-ज़ियाँ से दूर

सबा अफ़ग़ानी

मुँह-ज़ोर आरज़ूओं की बे-मेहरियाँ न पूछ

रूही कंजाही

उसी हसीं से चमन में बहार आज भी है

रोहित सोनी ‘ताबिश’

रू-ए-ज़मीं नहीं कि सर-ए-आसमाँ नहीं

रोहित सोनी ‘ताबिश’

थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक

रियाज़ ख़ैराबादी

रहे हम आशियाँ में भी तो बर्क़-ए-आशियाँ हो कर

रियाज़ ख़ैराबादी

जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह

रियाज़ ख़ैराबादी

तजस्सुस

रिफ़अत सरोश

न फूल हूँ न सितारा हूँ और न शो'ला हूँ

रिफ़अत सरोश

जो ख़ुद न अपने इरादे से बद-गुमाँ होता

रज़ा लखनवी

मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं

रज़ा जौनपुरी

ठोकरों की शय परस्तिश की नज़र तक ले गए

रौनक़ रज़ा

यक़ीं से फूटती है या गुमाँ से आती है

राशिद तराज़

कभी यूँ भी करो शहर-ए-गुमाँ तक ले चलो मुझ को

राशिद तराज़

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