खार Poetry (page 5)

तिरी थकी हुई आँखों में ख़्वाब था कि नहीं

शाहिद कलीम

सियाह सफ़्हा-ए-हस्ती पे मैं उभर न सका

शाहिद कलीम

महताब है न अक्स-ए-रुख़-ए-यार अब कोई

शाहिद इश्क़ी

मेरे दिल में घर भी बनाता रहता है

शाहिद ग़ाज़ी

मोहब्बत मुझ से कहती थी ज़रा होश्यार दामन से

शाहिद भोपाली

रंग-ए-नज़र से हुस्न-ए-तमन्ना निखार के

शाहीन सिद्दीक़ी

इक आबला था सो भी गया ख़ार-ए-ग़म से फट

शाह नसीर

उठती घटा है किस तरह बोले वो ज़ुल्फ़ उठा कि यूँ

शाह नसीर

शमीम-ए-ज़ुल्फ़-ए-मुअम्बर जो रू-ए-यार से लूँ

शाह नसीर

रंग मैला न हुआ जामा-ए-उर्यानी का

शाह नसीर

न ज़िक्र-ए-आश्ना ने क़िस्सा-ए-बेगाना रखते हैं

शाह नसीर

मैं ज़ोफ़ से जूँ नक़्श-ए-क़दम उठ नहीं सकता

शाह नसीर

ख़ाल-ए-मश्शाता बना काजल का चश्म-ए-यार पर

शाह नसीर

दिल में है क्या जानिए किस का ख़याल-ए-नक़्श-ए-पा

शाह नसीर

बयाबाँ मर्ग है मजनून-ए-ख़ाक-आलूदा-तन किस का

शाह नसीर

बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ

शाह नसीर

क़ैद-ए-दिल से है मिरी काकुल-ए-पेचाँ नाज़ाँ

शाह आसिम

लश्कर-ए-इश्क़ आ पड़ा है मुल्क-ए-दिल पर टूट टूट

शाह आसिम

शक्ल-ए-मिज़्गाँ न ख़ार की सी है

शाद लखनवी

ख़लिश-ए-ख़ार हो वहशत में कि ग़म टूट पड़े

शाद लखनवी

नज़्म

शबनम अशाई

मोहब्बत ख़ार-ए-दामन बन के रुस्वा हो गई आख़िर

शानुल हक़ हक़्क़ी

जो भी अपनों से उलझता है वो कर क्या लेगा

शाद आरफ़ी

अहद-ए-मायूसी जहाँ तक साज़गार आता गया

शाद आरफ़ी

अभी तो मौसम-ए-ना-ख़ुश-गवार आएगा

शाद आरफ़ी

जब भी भूले से कभी लब पे हँसी आई है

सीमाब सुल्तानपुरी

किसी को कुछ नहीं मिलता है आरज़ू के बग़ैर

सय्यद ज़िया अल्वी

न अपना बाक़ी ये तन रहेगा न तन में ताब ओ तवाँ रहेगी

सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़

वीरानियों के ख़ार तो फूलों की छुवन भी

सौरभ शेखर

नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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