खार Poetry (page 6)

बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा

मोहम्मद रफ़ी सौदा

ख़ून-ए-दिल से रह-ए-हस्ती को फ़रोज़ाँ कर लें

सत्यपाल जाँबाज़

वाक़िफ़ थे कहाँ हम दिल-ए-ना-चार से पहले

सरवर आलम राज़

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

काली घटा कब आएगी फ़स्ल-ए-बहार में

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

इलाही ख़ैर हो वो आज क्यूँ कर तन के बैठे हैं

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

कहीं ये तस्कीन-ए-दिल न देखी कहीं ये आराम-ए-जाँ न देखा

सरस्वती सरन कैफ़

ज़ब्त की हद से गुज़र कर ख़ार तो होना ही था

सलीम शुजाअ अंसारी

बदन क़ुबूल है उर्यानियत का मारा हुआ

सलीम सिद्दीक़ी

रौशन सुकूत सब उसी शो'ला-बयाँ से है

सलीम शाहिद

मैं वो आँसू कि जो माला में पिरोया जाए

सलीम शाहिद

सुहाने ख़्वाब आँखों में संजोना चाहता हूँ

सलीम फ़राज़

हर-चंद मिरा शौक़-ए-सफ़र यूँ न रहेगा

सलीम फ़राज़

क़ासिद तिरे बार बार आए

सख़ी लख़नवी

इश्क़ है यार का ख़ुदा-हाफ़िज़

सख़ी लख़नवी

घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के

सख़ी लख़नवी

सोए हुओं में ख़्वाब से बेदार कौन है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

कम-ज़र्फ़ भी है पी के बहकता भी बहुत है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

जहाँ में रह के भी हम कब जहाँ में रहते हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मी-यौमिल-हिसाब

साजिदा ज़ैदी

रात गहरी है तो फिर ग़म भी फ़रावाँ होंगे

साजिदा ज़ैदी

जज़्बा-ए-इश्क़ भी है गर्मी-ए-बाज़ार भी है

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहती

साइमा असमा

लहजे का रंग लफ़्ज़ की ख़ुश्बू भी देख ले

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके

साहिर लुधियानवी

आज

साहिर लुधियानवी

भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागर से हम

साहिर लुधियानवी

हर एक फूल के दामन में ख़ार कैसा है

साहिर होशियारपुरी

सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया

साग़र निज़ामी

रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले

साग़र ख़य्यामी

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