खाली Poetry (page 3)

मंज़र से ला-मंज़र तक

ज़फ़र ताबिश

कितने हाथ सवाली हैं

ज़फ़र ताबिश

सब्ज़े से सब दश्त भरे हैं ताल भरे हैं पानी से

ज़फ़र सहबाई

मुज़्महिल क़दमों पे बार

ज़फ़र रबाब

गुमान तक में न था महव-ए-यास कर देगा

ज़फ़र कलीम

आज कल उस की तरह हम भी हैं ख़ाली ख़ाली

ज़फ़र इक़बाल

फिर कोई शक्ल नज़र आने लगी पानी पर

ज़फ़र इक़बाल

कुफ़्र से ये जो मुनव्वर मिरी पेशानी है

ज़फ़र इक़बाल

हमारे सर से वो तूफ़ाँ कहीं गुज़र गए हैं

ज़फ़र इक़बाल

एक ही नक़्श है जितना भी जहाँ रह जाए

ज़फ़र इक़बाल

जल्वा अफ़रोज़ है कअ'बे के उजालों की तरह

यज़दानी जालंधरी

अभी गुज़रे दिनों की कुछ सदाएँ शोर करती हैं

यासमीन हबीब

मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से

यगाना चंगेज़ी

चले चलो जहाँ ले जाए वलवला दिल का

यगाना चंगेज़ी

आप से आप अयाँ शाहिद-ए-मअ'नी होगा

यगाना चंगेज़ी

आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर

यगाना चंगेज़ी

ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

कितनी बार बुलाया उस को

वज़ीर आग़ा

इक बे-अंत वजूद

वज़ीर आग़ा

अंधी काली रात का धब्बा

वज़ीर आग़ा

दिल अज़ल से मरकज़-ए-आलाम है

वामिक़ जौनपुरी

ब-मअ'नी कुफ़्र से इस्लाम कब ख़ाली है ऐ ज़ाहिद

वलीउल्लाह मुहिब

मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ दिल आता है चमन में वो शराबी तू पहुँच

वलीउल्लाह मुहिब

लबालब कर दे ऐ साक़ी है ख़ाली मेरा पैमाना

वाजिद अली शाह अख़्तर

होंट मसरूफ़-ए-दुआ आँख सवाली क्यूँ है

वजीह सानी

क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आइए जल्वा-ए-दीदार के दिखलाने को

वहीद इलाहाबादी

खंडर आसेब और फूल

वहीद अख़्तर

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