डर Poetry (page 19)

इस तरह कुछ बदल गई है ज़मीं

बाक़र मेहदी

जो ज़माने का हम-ज़बाँ न रहा

बाक़र मेहदी

दीवानगी की राह में गुम-सुम हुआ न था!

बाक़र मेहदी

शायद

बलराज कोमल

दिल के हाथों ख़राब हो जाना

बलराज हयात

क़ातिल हुआ ख़मोश तो तलवार बोल उठी

बख़्श लाइलपूरी

किया है संदलीं-रंगों ने दर बंद

बहराम जी

'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं

बद्र वास्ती

महसूस हो रहा है जो ग़म मेरी ज़ात का

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

तारीक उजालों में बे-ख़्वाब नहीं रहना

अज़रा वहीद

हवा के लब पे नए इंतिसाब से कुछ हैं

अज़रा वहीद

फ़ीमेल बुल-फ़ाइटर

अज़रा अब्बास

एक नज़्म रोज़ आती है

अज़रा अब्बास

अगर साए से जल जाने का इतना ख़ौफ़ था तो फिर

अज़्म शाकरी

अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते

अज़्म शाकरी

माँगना ख़्वाहिश-ए-दीदार से आगे क्या है

अज़लान शाह

तमाम शहर को तारीकियों से शिकवा है

अज़ीज़ नबील

वो दुख नसीब हुए ख़ुद-कफ़ील होने में

अज़ीज़ नबील

जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी

अज़ीज़ नबील

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

उम्र भर रास्ते घेरे रहे उस शख़्स का घर

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

हर एक राह में इम्कान-ए-हादिसा है अभी

अज़हर नैयर

तू भी वफ़ा के रूप में अब ढल के देख ले

अज़हर जावेद

ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से

अज़हर इक़बाल

कल परदेस में याद आएगी ध्यान में रख

अज़हर अदीब

ये मैं था या मिरे अंदर का ख़ौफ़ था जिस ने

आज़ाद गुलाटी

साहिल पे रुक के सू-ए-समुंदर न देखिए

आज़ाद गुलाटी

कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को

आज़ाद गुलाटी

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