डर Poetry (page 6)
सफ़र के बीच वो बोला कि अपने घर जाऊँ
सिदरा सहर इमरान
अपने सीने को मिरे ज़ख़्मों से भरने वाली
सिद्दीक़ मुजीबी
जब खुले मुट्ठी तो सब पढ़ लें ख़त-ए-तक़्दीर को
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
हवा चली तो पसीना रगों में बैठ गया
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
बुल-हवस में भी न था वो बुत भी हरजाई न था
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
ये रोज़ ओ शब का तसलसुल रवाँ-दवाँ ही रहा
सिद्दीक़ शाहिद
मुसाफ़िरों में अभी तल्ख़ियाँ पुरानी हैं
सिब्त अली सबा
तिरी तस्वीर से रहमत बरसती है गुरु-नानक
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ज़रा सब्र!
शोरिश काश्मीरी
खेल
शोरिश काश्मीरी
वो जिस के दिल में निहाँ दर्द दो-जहाँ का था
शोला हस्पानवी
हर-चंद सहारा है तिरे प्यार का दिल को
शोहरत बुख़ारी
दरों को चुनता हूँ दीवार से निकलता हूँ
शोएब निज़ाम
नाज़ भला किस बात का तुझ को पास-ए-हुनर जब कुछ भी नहीं
शमशाद शाद
दिलों को तोड़ने वालो ख़ुदा का ख़ौफ़ करो
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
हवा भी गर्म है छाए हैं सुर्ख़ बादल क्यूँ
शिफ़ा कजगावन्वी
अदल-ए-जहाँगीरी
शिबली नोमानी
तिरी निगाह ने अपना बना के छोड़ दिया
शेवन बिजनौरी
कुछ इशारे वो सर-ए-बज़्म जो कर जाते हैं
शेर सिंह नाज़ देहलवी
देखूँ तो कहाँ तक वो तलत्तुफ़ नहीं करता
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
तिलिस्म
शीरीं अहमद
दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे
शीन काफ़ निज़ाम
दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे
शीन काफ़ निज़ाम
ख़ौफ़-ए-सहरा
शाज़ तमकनत
सन कर बयान-ए-दर्द कलेजा दहल न जाए
शाज़ तमकनत
क्या क़यामत है कि इक शख़्स का हो भी न सकूँ
शाज़ तमकनत
ख़ुद अपना हाल दिल-ए-मुब्तला से कुछ न कहा
शाज़ तमकनत
वक़्त आख़िर ले गया वो शोख़ियाँ वो बाँकपन
शायान क़ुरैशी
शिकोह-ए-ज़ात से दुश्मन का लश्कर काँप जाता है
शायान क़ुरैशी
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