डर Poetry (page 8)

अजब अहवाल देखा इस ज़माने के अमीरों का

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न पूछ मेरी कहानी कहाँ से निकली है

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

आता है ख़ौफ़ आँख झपकते हुए मुझे

शहज़ाद अहमद

सब्त है चेहरों पे चुप बन में अंधेरा हो चुका

शहज़ाद अहमद

ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई

शहज़ाद अहमद

घर जला लेता है ख़ुद अपने ही अनवार से तू

शहज़ाद अहमद

दिल का बुरा नहीं मगर शख़्स अजीब ढब का है

शहज़ाद अहमद

बे-नाम से इक ख़ौफ़ से दिल क्यूँ है परेशाँ

शहरयार

ज़िंदा रहने का ये एहसास

शहरयार

वामांदगी-ए-शौक़

शहरयार

मेरी ज़मीं

शहरयार

सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का

शहरयार

जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा

शहरयार

हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है

शहरयार

हँस रहा था मैं बहुत गो वक़्त वो रोने का था

शहरयार

आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए

शहरयार

ग़ुबार-ए-दर्द में राह-ए-नजात ऐसा ही

शहराम सर्मदी

किसी से हाथ किसी से नज़र मिलाते हुए

शहनाज़ नूर

अजीब ख़ौफ़ है जज़्बों की बे-लिबासी का

शहनाज़ नबी

ग़म मुझ से किसी तौर समेटा नहीं जाता

शहनाज़ मुज़म्मिल

सराब-ए-शब भी है ख़्वाब-ए-शिकस्ता-पा भी है

शाहिदा हसन

यूँ तो नहीं कि पहले सहारे बनाए थे

शाहिद ज़की

सीने की मिसाल आग है चाँदी सा धुआँ है

शाहिद शैदाई

कहीं कुछ नहीं होता

शाहिद माहुली

अजीब लोग

शाहिद माहुली

ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला

शाहिद कमाल

ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला

शाहिद कमाल

कर्ब चेहरे से मह-ओ-साल का धोया जाए

शाहिद कबीर

कुछ भी न जब दिखाई दे तब देखता हूँ मैं

शाहीन अब्बास

किसी आसेब-ज़दा दिल की सदा है क्या है

शाहबाज़ रिज़्वी

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