डर Poetry (page 9)

साअत-ए-आसूदगी देखे हुए अर्सा हुआ

शहबाज़ नदीम ज़ियाई

वो एक ख़्वाब कि आँखों में जगमगा रहा है

शहबाज़ ख़्वाजा

ऐसे रखती है हमें तेरी मोहब्बत ज़िंदा

शहबाज़ ख़्वाजा

तस्ख़ीर-ए-फ़ितरत के बअ'द

शहाब जाफ़री

हयात में भी अजल का समाँ दिखाई दे

शहाब जाफ़री

मुझ को शाम-ए-हिज्र की ये जल्वा-आराई बहुत

शहाब अशरफ़

पलट पलट के मैं अपने पे ख़ुद ही वार करूँ

शफ़क़त सेठी

देख कर उस को मुझे धचका लगा

शफ़ीक़ सलीमी

मोहब्बत की करिश्मा-साज़ियाँ आवाज़ देती हैं

शफ़ीक़ आसिफ़

क्या कहूँ ग़ुंचा-ए-गुल नीम-दहाँ है कुछ और

शाद लखनवी

गर जुनूँ कर मुझे पाबंद-ए-सलासिल जाता

शाद लखनवी

मय-ए-फ़राग़त का आख़िरी दौर चल रहा था

शब्बीर शाहिद

सुना के रंज-ओ-अलम मुझ को उलझनों में न डाल

शब्बीर नाज़िश

शब-ए-विसाल थी रौशन फ़ज़ा में बैठा था

शबाब ललित

हुदूद-ए-अक्ल-ओ-शर्ब का सवाल ही नहीं रहा

शाद आरफ़ी

टलने के नहीं अहल-ए-वफ़ा ख़ौफ़-ए-ज़ियाँ से

सीमाब ज़फ़र

मैं ने कहा था मुझ को अँधेरे का ख़ौफ़ है

सीमा ग़ज़ल

सर-ब-सर बदला हुआ देखा था कल यार का रंग

सावन शुक्ला

संजीदगी की ख़ास ज़रूरत तो है नहीं

सौरभ शेखर

कहते हैं लोग यार का अबरू फड़क गया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

नुमू-पज़ीर है इक दश्त-ए-बे-नुमू मुझ में

सऊद उस्मानी

ख़ला में लुढ़कती ज़मीन

सरवत ज़ेहरा

अपनी हम-ज़ाद के लिए

सरवत ज़ेहरा

दरख़्त मेरे दोस्त

सरवत हुसैन

ढोल का पोल

सरमद सहबाई

फिर ऐसा मोड़ इस क़िस्से में आया

सरफ़राज़ ज़ाहिद

मिल-जुल कर ईमान ख़ुदा पर ला सकते हैं

सरफ़राज़ ज़ाहिद

दो आँखों से कम से कम इक मंज़र में

सरफ़राज़ ज़ाहिद

कुछ लोग रब्त-ए-ख़ास से आगे निकल गए

सरफ़राज़ शाहिद

जीना मरना दोनों मुहाल

सरस्वती सरन कैफ़

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