संजीदगी की ख़ास ज़रूरत तो है नहीं
संजीदगी की ख़ास ज़रूरत तो है नहीं
अफ़्साना है ये ज़ीस्त हक़ीक़त तो है नहीं
अदना सा एक दायरा है इश्क़-ओ-उन्स का
इस दिल में आसमान की वुसअत तो है नहीं
इक सोच है ज़रा सी मिरी तुम से मुख़्तलिफ़
कुछ मेरी तुम से ज़ाती अदावत तो है नहीं
बाज़ार से है सब को मुनाफ़े' की ही ग़रज़
पर सब के पास तर्ज़-ए-तिजारत तो है नहीं
उस ने ज़रूर कर लिया इक़बाल जुर्म का
लेकिन नज़र में उस के नदामत तो है नहीं
लिक्खा है थोड़ी नाम किसी का हवाओं पर
ये धूप भी किसी की विरासत तो है नहीं
'सौरभ' तुझे ये ख़ौफ़ है रुस्वाइयों का क्यूँ
ऐसी तिरी समाज में इज़्ज़त तो है नहीं
(640) Peoples Rate This