विचार Poetry (page 34)

मिरी गिरफ़्त में है ताएर-ए-ख़याल मिरा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मेरे लब तक जो न आई वो दुआ कैसी थी

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

बर्क़ का ठीक अगर निशाना हो

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ये जहाँ-नवर्द की दास्ताँ ये फ़साना डोलते साए का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

मैं रिज़्क़-ए-ख़्वाब हो के भी उसी ख़याल में रहा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

फिर वही हम हैं ख़याल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा है वही

ग़ुलाम भीक नैरंग

हमारे हाथ से वो भी निकल गया आख़िर

ग़ज़नफ़र

सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे

ग़ज़नफ़र

उस की सूरत का तसव्वुर दिल में जब लाते हैं हम

ग़मगीन देहलवी

उस शो'ला-रू से जब से मिरी आँख जा लगी

ग़मगीन देहलवी

कभी गुमान कभी ए'तिबार बन के रहा

ग़ालिब अयाज़

या रब हमें तो ख़्वाब में भी मत दिखाइयो

ग़ालिब

सँभलने दे मुझे ऐ ना-उमीदी क्या क़यामत है

ग़ालिब

जल्वे का तेरे वो आलम है कि गर कीजे ख़याल

ग़ालिब

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन

ग़ालिब

हस्ती के मत फ़रेब में आ जाइयो 'असद'

ग़ालिब

है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़याल

ग़ालिब

है आदमी बजाए ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल

ग़ालिब

गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार

ग़ालिब

दिल से मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई का ख़याल

ग़ालिब

आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में

ग़ालिब

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ग़ालिब

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

ग़ालिब

वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो

ग़ालिब

शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था

ग़ालिब

सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का

ग़ालिब

रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा

ग़ालिब

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