ऋतु Poetry (page 7)

क्यूँ मुश्त-ए-ख़ाक पर कोई दिल दाग़दार हो

शाह दीन हुमायूँ

है अयाँ रू-ए-यार आँखों में

शाह आसिम

जो ब-ईं ग़म भी शादमाँ गुज़री

शफ़क़त काज़मी

ऐसी नींद आई कि फिर मौत को प्यार आ ही गया

शफ़ीक़ जौनपुरी

दीवानगी-ए-शौक़ का सामाँ सजा के ला

शफ़ीक़ देहलवी

ना-फ़हम कहूँ मैं उसे ऐसा भी नहीं है

शायर फतहपुरी

गुल-ए-ख़ुश-नुमा के लिबास में कि शुआ-ए-नूर में ढल के आ

शायर फतहपुरी

दम-ए-ता'मीर तख़रीब-ए-जहाँ कुछ और कहती है

शायर फतहपुरी

हुई तो जा दिल में उस सनम की नमाज़ में सर झुका झुका कर

शाद लखनवी

तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा

शाद अज़ीमाबादी

सियाहकार सियह-रू ख़ता-शिआर आया

शाद अज़ीमाबादी

क्यूँ हो बहाना-जू न क़ज़ा सर से पाँव तक

शाद अज़ीमाबादी

क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा

शाद अज़ीमाबादी

दर आया अंधेरा आँखों में और सब मंज़र धुँदलाए हैं

शबनम शकील

अभी तक उन के वही सितम हैं जफ़ा की ख़ू भी नहीं गई है

शबाब

आशिक़ की जान जाती है इस बाँकपन को छोड़

शबाब

जो थके थके से थे हौसले वो शबाब बन के मचल गए

शायर लखनवी

जो ग़म-ए-हबीब से दूर थे वो ख़ुद अपनी आग में जल गए

शायर लखनवी

वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़

शानुल हक़ हक़्क़ी

वही इक फ़रेब हसरत कि था बख़्शिश-ए-निगाराँ

शानुल हक़ हक़्क़ी

उम्मीद के उफ़ुक़ से न उट्ठा ग़ुबार तक

शानुल हक़ हक़्क़ी

है अब की फ़स्ल में रंग बहार और ही कुछ

शानुल हक़ हक़्क़ी

असर न हो तो उसी नुत्क़-ए-बे-असर से कह

शानुल हक़ हक़्क़ी

मुद्दत से ढूँडती है किसी की नज़र मुझे

शाद अमृतसरी

कभी तलाश न ज़ाए न राएगाँ होगी

शाद आरफ़ी

वुसअतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए

सीमाब अकबराबादी

महफ़िल-ए-दोस्त में गो सीना-फ़िगार आए हैं

सय्यद एहतिशाम हुसैन

हर किसी आँख का बदला हुआ मंज़र होगा

साईल इमरान

न अपना बाक़ी ये तन रहेगा न तन में ताब ओ तवाँ रहेगी

सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़

सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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