ऋतु Poetry (page 5)

हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

नुमूद-ए-रंग से बेगाना-वार आई है

शिव दयाल सहाब

नज़र बहार न देखे तो बे-क़रार न हो

शिव दयाल सहाब

दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे

ज़ौक़

क्या क्या न तेरे सदमे से बाद-ए-ख़िज़ाँ गिरा

शैख़ अली बख़्श बीमार

नींद उजड़ी तो निगाहों में मनाज़िर क्या हैं

शहपर रसूल

हज़ारों मुश्किलें हैं और लाखों ग़म लिए हैं हम

शायान क़ुरैशी

मारे ग़ुस्से के ग़ज़ब की ताब रुख़्सारों में है

शौक़ क़िदवाई

इधर है बाद-ए-सुमूम नालाँ उधर है बर्क़-ए-तपाँ भी आजिज़

शौक़ बहराइची

उस के नाम

शौकत परदेसी

तराना-ए-उर्दू

शातिर हकीमी

दिखाई देंगे जो गुल मेज़ पर क़रीने से

शारिक़ जमाल

गुलज़ार में वो रुत भी कभी आ के रहेगी

शरीफ़ कुंजाही

तू समझता है तो ख़ुद तेरी नज़र गहरी नहीं

शरीफ़ कुंजाही

गुलज़ार में वो रुत भी कभी आ के रहेगी

शरीफ़ कुंजाही

धड़कनें बंद-ए-तकल्लुफ़ से ज़रा आज़ाद कर

शरीफ़ कुंजाही

कुछ इस तरह वो निगाहें चुराए जाते हैं

शम्स ज़ुबैरी

ख़लिश हो जिस में वो अरमाँ तलाश करता हूँ

शम्स इटावी

ये ख़ुशी ग़म-ए-ज़माना का शिकार हो न जाए

शमीम करहानी

दर्द-शनास दिल नहीं जल्वा-तलब नज़र नहीं

शमीम करहानी

अब क़ैस है कोई न कोई आबला-पा है

शमीम हनफ़ी

मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

शकील बदायुनी

ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है

शकील बदायुनी

मुझे भूल जा

शकील बदायुनी

तिरे बग़ैर अजब बज़्म-ए-दिल का आलम है

शकील बदायुनी

तौफ़-ए-हरम न देर की गहराइयों में है

शकील बदायुनी

मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

शकील बदायुनी

लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले

शकील बदायुनी

जो दिल पे गुज़रती है वो समझा नहीं सकते

शकील बदायुनी

जाम गर्दिश में है दर-बंद हैं मय-ख़ानों के

शकील बदायुनी

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