ऋतु Poetry (page 8)

मक़्दूर नहीं उस की तजल्ली के बयाँ का

मोहम्मद रफ़ी सौदा

तुझ को मेरे क़ुर्ब में पा कर जलते हैं दीवाने लोग

सत्यपाल जाँबाज़

साक़ी की हर निगाह में सहबा थी जाम था

सत्यपाल जाँबाज़

ख़ून-ए-दिल से रह-ए-हस्ती को फ़रोज़ाँ कर लें

सत्यपाल जाँबाज़

बहार-ए-गुल से अब दौर-ए-ख़िज़ाँ तक

सत्यपाल जाँबाज़

शिकोह-ए-आब में गुम थे जिहत-निशाँ मेरे

सत्तार सय्यद

वाक़िफ़ थे कहाँ हम दिल-ए-ना-चार से पहले

सरवर आलम राज़

हुस्न-ए-बहार मुझ को मुकम्मल नहीं लगा

सरवत हुसैन

थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से

सरवत हुसैन

आँखों में सौग़ात समेटे अपने घर आते हैं

सरवत हुसैन

तेरी नाराज़गी फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ है

सरताज आलम आबिदी

रौनक़-ए-अहद-ए-जवानी अलविदा'अ

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

कुछ बद-गुमानियाँ हैं कुछ बद-ज़बानियाँ हैं

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

कहीं ये तस्कीन-ए-दिल न देखी कहीं ये आराम-ए-जाँ न देखा

सरस्वती सरन कैफ़

इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में

साक़िब लखनवी

हद-बंदी-ए-ख़िज़ाँ से हिसार-ए-बहार तक

साक़ी फ़ारुक़ी

यहीं कहीं पे कभी शोला-कार मैं भी था

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं वो हूँ जिस पे अब्र का साया पड़ा नहीं

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था

साक़ी फ़ारुक़ी

तीसरी बारिश से पहले

समीना राजा

हम रूह-ए-काएनात हैं नक़्श-ए-असास हैं

समद अंसारी

फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में शाख़ से पत्ता निकाल दे

सलीम फ़िगार

ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है

सलीम अहमद

फूलों के देस चाँद सितारों के शहर में

सलाम मछली शहरी

इन ग़ज़ालान-ए-तरह-दार को कैसे छोड़ूँ

सलाम मछली शहरी

हम ऐसे लोग जल्द असीर-ए-ख़िज़ाँ हुए

सलाम मछली शहरी

मिरी रात खो गई है किसी जागते बदन में

सलाहुद्दीन परवेज़

निखरा ख़िज़ाँ से रंग-ए-बहाराँ है इन दिनों

सज्जाद बाक़र रिज़वी

जहाँ में रह के भी हम कब जहाँ में रहते हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हज़ार शुक्र कभी तेरा आसरा न गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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