आपका Poetry (page 18)

खिले हुए हैं फूल सितारे दरिया के उस पार

साबिर वसीम

इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है

साबिर दत्त

जो बू-ए-ज़िंदगी मुझे किरन किरन से आई है

साबिर आफ़ाक़ी

बू-ए-ख़ुश की तरह हर सम्त बिखर जाऊँगा

सबा जायसी

ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़ ओ साज़ पर

साइल देहलवी

हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना

सादुल्लाह शाह

हसीं चेहरों से सूरत-आश्नाई होती रहती है

रूही कंजाही

ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की

रियाज़ ख़ैराबादी

ये बला मेरे सर चढ़ी ही नहीं

रियाज़ ख़ैराबादी

रहे हम आशियाँ में भी तो बर्क़-ए-आशियाँ हो कर

रियाज़ ख़ैराबादी

परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका

रियाज़ ख़ैराबादी

मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद

रियाज़ ख़ैराबादी

जो पिलाए वो रहे यारब मय-ओ-साग़र से ख़ुश

रियाज़ ख़ैराबादी

जवानी मय-ए-अरग़वानी से अच्छी

रियाज़ ख़ैराबादी

होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी

रियाज़ ख़ैराबादी

दिल ढूँढती है निगह किसी की

रियाज़ ख़ैराबादी

बाम पर आए कितनी शान से आज

रियाज़ ख़ैराबादी

इश्क़ कुछ आप पे मौक़ूफ़ नहीं ख़ुश रहिए

रिन्द लखनवी

तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना

रिन्द लखनवी

क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए

रिन्द लखनवी

जो रिवायात भूल जाते हैं

रिफ़अत सुलतान

अब कहीं साया-ए-गेसू भी नहीं

रिफ़अत सुलतान

रक़्स

रिफ़अत नाहीद

वक़्त ख़ुश ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए

रियाज़ मजीद

वो दिल कि था कभी सरसब्ज़ खेतियों की तरह

रियाज़ मजीद

वक़्त ख़ुश-ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए

रियाज़ मजीद

बदल सका न जुदाई के ग़म उठा कर भी

रियाज़ मजीद

जागती आँखों का ख़्वाब

रहमान फ़ारिस

मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं

रहमान फ़ारिस

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