रक़्स

मिरे हम-रक़्स

मैं जब एड़ियाँ अपनी उठा कर

तुम्हारे मज़बूत कंधों से परे

पस-मंज़र में रक़्साँ ज़ीस्त को

वफ़ा का गीत गाते देखती हूँ

तो मिरी मसरूर आँखें

वफ़ूर-ए-इश्क़ से बे-ताब हो कर काँपती हैं

मिरे चेहरे को

पलकों का नग़्मा सुर्ख़ करता है

बदन का ख़ून रुख़्सारों पे शो'ले फेंकता है

मोहब्बत माँग में मेरी

रुपहली और सुनहरी

अफ़्शाँ छिड़कती है

मैं अपनी गर्म साँसों से

महकते और उजले ख़ुशनुमा कॉलर तले

तुम्हारी गंदुमी

चमकीली दमकती जिल्द छूती हूँ

मिरे महबूब लम्हे मचलते जुगनुओं जैसे

मिरे मल्बूस के लहरे से मिल कर

दाएरों में झिलमिलाते हैं

तुम अपने बाज़ुओं की

गिरफ़्त-ए-बे-पनाह को ज़रा कम करो

कि मैं

तुम्हारी धड़कनों की ताल पर पाँव उठाऊँ

मुझे डर है मिरा दिल रास्ता न भूल जाए

मुतरिबा

साज़ बजा

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In Hindi By Famous Poet Rifat Naheed. is written by Rifat Naheed. Complete Poem in Hindi by Rifat Naheed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.