आपका Poetry (page 28)
आइना-आसा ये ख़्वाब-ए-नीलमीं रक्खूँगा मैं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी
ग़ुबार भट्टी
तसल्ली को हमारी बाग़बाँ कुछ और कहता है
ग़ुबार भट्टी
मुख़्तसर सी बात को भी मसअला कहते रहे
ग़ौसिया ख़ान सबीन
बिजली की ज़द में एक मिरा आशियाँ नहीं
ग़नी एजाज़
अंदाज़-ए-फ़िक्र अहल-ए-जहाँ का जुदा रहा
ग़नी एजाज़
'ग़मगीं' जो एक आन पे तेरे अदा हुआ
ग़मगीन देहलवी
उस के कूचे में गया मैं सो फिर आया न गया
ग़मगीन देहलवी
उस शो'ला-रू से जब से मिरी आँख जा लगी
ग़मगीन देहलवी
मुझ से आज़ुर्दा जो उस गुल-रू को अब पाते हैं लोग
ग़मगीन देहलवी
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं
ग़ालिब
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
ग़ालिब
दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
ग़ालिब
तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था
ग़ालिब
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ग़ालिब
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
ग़ालिब
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
ग़ालिब
लाग़र इतना हूँ कि गर तू बज़्म में जा दे मुझे
ग़ालिब
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
ग़ालिब
क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है
ग़ालिब
हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है
ग़ालिब
हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है
ग़ालिब
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है
ग़ालिब
गुलशन को तिरी सोहबत अज़-बस-कि ख़ुश आई है
ग़ालिब
दोनों जहाँ दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
ग़ालिब
बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला
ग़ालिब
यहाँ कौन इस के सिवा रह गया
गौहर होशियारपुरी
सर पर कोई आसमान रख दे
गौहर होशियारपुरी
सदाक़तों के दहकते शोलों पे मुद्दतों तक चला किए हम
फ़ुज़ैल जाफ़री
ये नहीं कसरत-ए-आलाम से जल जाते हैं
फ़ितरत अंसारी
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