'ग़मगीं' जो एक आन पे तेरे अदा हुआ
क्या ख़ुश अदा उसे तिरी ऐ ख़ुश-अदा लगी
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(822) Peoples Rate This
शम्अ-रू आशिक़ को अपने यूँ जलाना चाहिए
मेरी ये आरज़ू है वक़्त-ए-मर्ग
जो न वहम-ओ-गुमान में आवे
उस के कूचे में गया मैं सो फिर आया न गया
मुझ से आज़ुर्दा जो उस गुल-रू को अब पाते हैं लोग
मुखड़ा वो बुत जिधर करेगा
मुझे जो दोस्ती है उस को दुश्मनी मुझ से
मैं ने हर-चंद कि उस कूचे में जाना छोड़ा
उस शो'ला-रू से जब से मिरी आँख जा लगी
किया बदनाम इक आलम ने 'ग़मगीं' पाक-बाज़ी में
वो लुत्फ़ उठाएगा सफ़र का