वो लुत्फ़ उठाएगा सफ़र का
आप-अपने में जो सफ़र करेगा
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मुझे जो दोस्ती है उस को दुश्मनी मुझ से
उस की सूरत का तसव्वुर दिल में जब लाते हैं हम
जो न वहम-ओ-गुमान में आवे
कोई समझाओ उन्हें बहर-ए-ख़ुदा ऐ मोमिनो
हाथ से मेरे वो पीता नहीं मुद्दत से शराब
'ग़मगीं' जो एक आन पे तेरे अदा हुआ
मुखड़ा वो बुत जिधर करेगा
मुझ से आज़ुर्दा जो उस गुल-रू को अब पाते हैं लोग
उस के कूचे में गया मैं सो फिर आया न गया
न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है
शम्अ-रू आशिक़ को अपने यूँ जलाना चाहिए