मुझे जो दोस्ती है उस को दुश्मनी मुझ से
न इख़्तियार है उस का न मेरा चारा है
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कोई समझाओ उन्हें बहर-ए-ख़ुदा ऐ मोमिनो
उस की सूरत का तसव्वुर दिल में जब लाते हैं हम
मुखड़ा वो बुत जिधर करेगा
जो न वहम-ओ-गुमान में आवे
मैं ने हर-चंद कि उस कूचे में जाना छोड़ा
मिरा उस के पस-ए-दीवार घर होता तो क्या होता
हाथ से मेरे वो पीता नहीं मुद्दत से शराब
मेरी ये आरज़ू है वक़्त-ए-मर्ग
'ग़मगीं' जो एक आन पे तेरे अदा हुआ
मुझ से आज़ुर्दा जो उस गुल-रू को अब पाते हैं लोग
वो लुत्फ़ उठाएगा सफ़र का
उस के कूचे में गया मैं सो फिर आया न गया