आपका Poetry (page 27)

उस सितमगर की मेहरबानी से

गुलज़ार देहलवी

फ़लाह-ए-आदमियत में सऊबत सह के मर जाना

गुलज़ार देहलवी

कौन पस-ए-मंज़र में उजड़े पैकरों को देखता

गुलज़ार बुख़ारी

कितनी सदियाँ ना-रसी की इंतिहा में खो गईं

गुलज़ार बुख़ारी

हम शाद हों क्या जब तक आज़ार सलामत है

गुलज़ार बुख़ारी

आग में क्या क्या जला है शब भर

गुलज़ार

लिबास

गुलज़ार

ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर

गुलज़ार

एक परवाज़ दिखाई दी है

गुलज़ार

दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए

गुलनार आफ़रीन

ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जहाँ में कहाँ बाहम उल्फ़त रही है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

लब-ए-जाँ-बख़्श पे दम अपना फ़ना होता है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

हाथ से कुछ न तिरे ऐ मह-ए-कनआँ होगा

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

जब मिली उन से नज़र मिटने का सामाँ हो गया

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

दिल जलाने से कहाँ दूर अंधेरा होगा

गोपाल मित्तल

वो लोग मुतमइन हैं कि पत्थर हैं उन के पास

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़

ग़ुलाम मौला क़लक़

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

ये सच है मिल बैठने की हद तक तो काम आई है ख़ुश-गुमानी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुदूद-ए-क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमाँ में कोई नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आज आईने में जो कुछ भी नज़र आता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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