खुशबू Poetry (page 20)

अभी निकलो न घर से तंग आ के

फ़िराक़ जलालपुरी

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़िंदगी दर्द की कहानी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा

फ़ज़्ल ताबिश

उदास देख के वजह-ए-मलाल पूछेगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले

फ़े सीन एजाज़

मौसम की पहली बारिश

फ़ातिमा हसन

बिखर रहे थे हर इक सम्त काएनात के रंग

फ़ातिमा हसन

रंग-ओ-ख़ुशबू का कहीं कोई करे ज़िक्र तो बात

फ़रताश सय्यद

कीसा-ए-गुल में बंद थी ख़ुशबू

फ़रताश सय्यद

गुँध के मिट्टी जो कभी चाक पे आ जाती है

फ़रताश सय्यद

दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

मैं तो लम्हात की साज़िश का निशाना ठहरा

फ़ारूक़ शमीम

ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की

फ़ारूक़ नाज़की

तेज़ाब, आकार ख़ुश्बू का

फ़ारूक़ नाज़की

नींद क्यूँ नहीं आती

फ़ारूक़ नाज़की

महकते लफ़्ज़ों में शामिल है रंग-ओ-बू किस की

फ़ारूक़ बख़्शी

परिंदे खेत में अब तक पड़ाव डाले हैं

फ़ारूक़ अंजुम

अब धूप मुक़द्दर हुई छप्पर न मिलेगा

फ़ारूक़ अंजुम

वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है

फ़ारिग़ बुख़ारी

नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा

फ़ारिग़ बुख़ारी

मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है

फ़ारिग़ बुख़ारी

बैज़ा-ए-नूर

फ़रहत एहसास

तन्हाई के आब-ए-रवाँ के साहिल पर बैठा हूँ मैं

फ़रहत एहसास

गर दुआ भी कोई चीज़ है तो दुआ के हवाले किया

फ़रहत अब्बास शाह

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