खुशबू Poetry (page 19)

बयाबाँ-ज़ाद कोई क्या कहे ख़ुद बे-मकाँ है

हकीम मंज़ूर

शरर-अफ़शाँ वो शरर-ख़ू भी नहीं

हफ़ीज़ ताईब

फ़ुर्सत की तमन्ना में

हफ़ीज़ जालंधरी

मुम्ताज़

हबीब जालिब

कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें

हबीब जालिब

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

दश्त-ए-ग़म में साया-ए-गेसू न ढूँढ

हबाब तिर्मिज़ी

उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला

गुलज़ार बुख़ारी

आँधी में बिसात उलट गई है

गुलज़ार बुख़ारी

काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं

गुलज़ार

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता

गुलज़ार

याद नहीं है

गुलनाज़ कौसर

किसी की याद का चेहरा

गुलनाज़ कौसर

दिल का हर ज़ख़्म तिरी याद का इक फूल बने

गुलनार आफ़रीन

दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए

गुलनार आफ़रीन

तू अंग अंग में ख़ुश्बू सी बन गया होगा

गुलाम जीलानी असग़र

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

गोपालदास नीरज

मिरे पर न बाँधो

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

समीता-पाटिल

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हुआ रौशन दम-ए-ख़ुर्शीद से फिर रंग पानी का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दस्त-ए-राहत ने कभी रँज-ए-गिराँ-बारी ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

तुझे मैं भूल जाना चाहता हूँ

ग़यास अंजुम

दिल की नय्या दो नैनों के मोह में डूबी जाए

ग़ौस सीवानी

ख़्वाहिशें अपनी सराबों में न रक्खे कोई

ग़नी एजाज़

वो मौज-ए-ख़ुनुक शहर-ए-शरर तक नहीं आई

फ़ुज़ैल जाफ़री

मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद

फ़ुज़ैल जाफ़री

हर सम्त लहू-रंग घटा छाई सी क्यूँ है

फ़ुज़ैल जाफ़री

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