अपमानित Poetry (page 6)

गिरनी थी हम पे बर्क़-ए-तजल्ली न तूर पर

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

मुज़्दा ऐ ज़ौक़-ए-असीरी कि नज़र आता है

ग़ालिब

क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

ग़ालिब

जराहत तोहफ़ा अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया

ग़ालिब

दोनों जहाँ दे के वो समझे ये ख़ुश रहा

ग़ालिब

दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

ख़ुद लफ़्ज़ पस-ए-लफ़्ज़ कभी देख सके भी

फ़ुज़ैल जाफ़री

उधार

फ़ुर्क़त काकोरवी

मेहनत-ओ-दर्द-ओ-रंज-ओ-ग़म और अलम ये रात दिन

फ्रांस गॉड्लिब क्वीन फ़्रेस्को

दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया

फ़िराक़ गोरखपुरी

हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता

फ़ज़्ल ताबिश

आते हैं अयादत को तो करते हैं नसीहत

फ़ानी बदायुनी

याँ होश से बे-ज़ार हुआ भी नहीं जाता

फ़ानी बदायुनी

बे-अजल काम न अपना किसी उनवाँ निकला

फ़ानी बदायुनी

रेशम ज़ुल्फ़ के तार भी बातें करते हैं

फख़्र अब्बास

यार अग़्यार हो गए हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

क़ैद-ए-तन्हाई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुलाक़ात मिरी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मिरे हमदम मिरे दोस्त!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

क्यूँ हर तरफ़ तू ख़्वार हुआ एहतिसाब कर

अहया भोजपुरी

रानाई-ए-कौनैन से बे-ज़ार हमीं थे

एहसान दानिश

बिकेगी उस की ही दस्तार तय है

डॉक्टर आज़म

लंदन में जश्न-ए-ग़ालिब

दिलावर फ़िगार

मुलाक़ात

दाऊद ग़ाज़ी

मज़दूर

दाऊद ग़ाज़ी

लिबास-ए-फ़क़्र में हम को जो ख़ाकसार मिले

दर्शन सिंह

उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं

दाग़ देहलवी

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

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