अपमानित Poetry (page 7)

हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से

दाग़ देहलवी

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता

दाग़ देहलवी

ख़ुद को तमाशा ख़ूब बनाता रहा हूँ मैं

बबल्स होरा सबा

सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते

बिस्मिल सईदी

बैठा नहीं हूँ साया-ए-दीवार देख कर

बिस्मिल सईदी

कहाँ आया है दीवानों को तेरा कुछ क़रार अब तक

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब दम-ब-ख़ुद हैं नब्ज़ की रफ़्तार देख कर

बिस्मिल अज़ीमाबादी

क़ाबिल-ए-शरह मिरा हाल-ए-दिल-ए-ज़ार न था

बिस्मिल इलाहाबादी

ज़ब्त-ए-नाला दिल-ए-फ़िगार न कर

बिर्ज लाल रअना

माशूक़ हमें बात का पूरा नहीं मिलता

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

कब तक करेंगे जब्र दिल-ए-ना-सुबूर पर

बेख़ुद देहलवी

दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा

बेख़ुद देहलवी

अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था

बेख़ुद देहलवी

यूँही रहा जो बुतों पर निसार दिल मेरा

बेखुद बदायुनी

इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया

बहज़ाद लखनवी

बरसों ग़म-ए-गेसू में गिरफ़्तार तो रक्खा

बेगम लखनवी

पूछता कौन है डरता है तू ऐ यार अबस

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

फ़रहाद किस उम्मीद पे लाता है जू-ए-शीर

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

क्या क्या लोग ख़ुशी से अपनी बिकने पर तय्यार हुए

बशर नवाज़

आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की

बहराम जी

पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के

ज़फ़र

होते होते चश्म से आज अश्क-बारी रह गई

ज़फ़र

भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ

ज़फ़र

कब कहाँ क्या मिरे दिलदार उठा लाएँगे

अता तुराब

इशरत-ए-तन्हाई

असरार-उल-हक़ मजाज़

आने वाली कल की दे कर ख़बर गया ये दिन भी

असरार ज़ैदी

एक यूसुफ़ के ख़रीदार हुए हैं हम लोग

अासिफ़ शफ़ी

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