अपमानित Poetry (page 8)

मगर नहीं था फ़क़त 'मीर' ख़्वार मैं भी था

अासिफ़ जमाल

हैफ़ दिल में तिरे वफ़ा न हुई

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

कहाँ खो गए मेरे ग़म-ख़्वार अब

असग़र शमीम

ग़ुबार सा है सर-ए-शाख़-सार कहते हैं

असग़र सलीम

ग़म-ए-हयात से जब वास्ता पड़ा होगा

असद भोपाली

पोशीदा क्यूँ है तूर पे जल्वा दिखा के देख

असअ'द बदायुनी

ख़ुदी की फ़ितरत-ए-ज़र्रीं के राज़-हा-ए-दरूँ

आरज़ू सहारनपुरी

क़ुर्बत बढ़ा बढ़ा कर बे-ख़ुद बना रहे हैं

आरज़ू लखनवी

परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का

अरशद अली ख़ान क़लक़

लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में

अरशद अली ख़ान क़लक़

दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया

अरशद अली ख़ान क़लक़

आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

अरशद अली ख़ान क़लक़

वो मक़्तल में अगर खींचे हुए तलवार बैठे हैं

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ

अनवर शऊर

और न दर-ब-दर फिरा और न आज़मा मुझे

अनवर शऊर

हद-ए-नज़र से मिरा आसमाँ है पोशीदा

अनवर सदीद

इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी

हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का

अनवर देहलवी

शिकस्त-ए-जाम

अमजद नजमी

मौत मेरी जान मौत

अमीक़ हनफ़ी

भूला हूँ मैं आलम को सरशार इसे कहते हैं

अमानत लखनवी

हक़ीक़त महरम-ए-असरार से पूछ

अल्ताफ़ हुसैन हाली

सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा

अल्लामा इक़बाल

मार्च 1907

अल्लामा इक़बाल

या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन

अल्लामा इक़बाल

वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ

अल्लामा इक़बाल

तू है किस मंज़िल में तेरा बोल खाँ है दिल का ठार

अलीमुल्लाह

वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें

अली सरदार जाफ़री

शम्अ' का मय का शफ़क़-ज़ार का गुलज़ार का रंग

अली सरदार जाफ़री

आइना-ख़ाना भी अंदोह-ए-तमन्ना निकला

आलमताब तिश्ना

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