वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ

वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ

ख़ुदा मुझे नफ़स-ए-जिबरईल दे तो कहूँ

सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा

वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़्लाक में है ख़्वार ओ ज़ुबूँ

हयात क्या है ख़याल ओ नज़र की मजज़ूबी

ख़ुदी की मौत है अँदेशा-हा-ए-गूना-गूँ

अजब मज़ा है मुझे लज़्ज़त-ए-ख़ुदी दे कर

वो चाहते हैं कि मैं अपने आप में न रहूँ

ज़मीर-ए-पाक ओ निगाह-ए-बुलंद ओ मस्ती-ए-शौक़

न माल-ओ-दौलत-ए-क़ारूँ न फ़िक्र-ए-अफ़लातूँ

सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे

कि आलम-ए-बशरीयत की ज़द में है गर्दूं

ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद

कि आ रही है दमादम सदा-ए-कुन-फ़यकूँ

इलाज आतिश-ए-'रूमी' के सोज़ में है तिरा

तिरी ख़िरद पे है ग़ालिब फ़िरंगियों का फ़ुसूँ

उसी के फ़ैज़ से मेरी निगाह है रौशन

उसी के फ़ैज़ से मेरे सुबू में है जेहूँ

(4832) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Wo Harf-e-raaz Ki Mujhko Sikha Gaya Hai Junun In Hindi By Famous Poet Allama Iqbal. Wo Harf-e-raaz Ki Mujhko Sikha Gaya Hai Junun is written by Allama Iqbal. Complete Poem Wo Harf-e-raaz Ki Mujhko Sikha Gaya Hai Junun in Hindi by Allama Iqbal. Download free Wo Harf-e-raaz Ki Mujhko Sikha Gaya Hai Junun Poem for Youth in PDF. Wo Harf-e-raaz Ki Mujhko Sikha Gaya Hai Junun is a Poem on Inspiration for young students. Share Wo Harf-e-raaz Ki Mujhko Sikha Gaya Hai Junun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.