किनारा Poetry (page 3)
हिरास
साहिर लुधियानवी
तलातुम का एहसान क्यूँ हम उठाएँ
साहिर भोपाली
कारवाँ लुट गया राहबर छुट गया रात तारीक है ग़म का यारा नहीं
सबा अफ़ग़ानी
मिरे सिमटे लहू का इस्तिआरा ले गया कोई
रियाज़ लतीफ़
हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे
रज़ा हमदानी
मौजों ने हाथ दे के उभारा कभी कभी
रतन पंडोरवी
ख़ुशी हम से किनारा कर रही है
राणा गन्नौरी
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें
राना आमिर लियाक़त
किसी मरक़द का ही ज़ेवर हो जाएँ
राम रियाज़
जुदा हो कर समुंदर से किनारा क्या बनेगा
इनआम आज़मी
सब हसीनों में वो प्यारा ख़ूब है
इमदाद अली बहर
गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया
इमदाद अली बहर
थोड़ी चाँदी थोड़ा गारा लगता है
इलियास बाबर आवान
दिल के घुटने को इशारा समझो
इदरीस बाबर
मुमकिन ही नहीं कि किनारा भी करेगा
हिलाल फ़रीद
मुझे तेरी जुदाई का ये सदमा मार डालेगा
हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी
दोस्तों से तो किनारा भी नहीं कर सकता
हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी
हम ने किस दिन तिरे कूचे में गुज़ारा न किया
हसरत मोहानी
था आसमान पर जो सितारा नहीं रहा
हसन आबिद
बाद-ए-सबा ये ज़ुल्म ख़ुदा-रा न कीजियो
हफ़ीज़ मेरठी
कृष्ण कन्हैया
हफ़ीज़ जालंधरी
अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा
ग़ुलाम मौला क़लक़
न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है
ग़मगीन देहलवी
रूह की माँग है वो जिस्म का सामान नहीं
फ़ातिमा हसन
मिरे नाख़ुदा न घबरा ये नज़र है अपनी अपनी
फ़ारूक़ बाँसपारी
कभी बे-नियाज़-ए-मख़्ज़न कभी दुश्मन-ए-किनारा
फ़ारूक़ बाँसपारी
बात अपनी अना की है वर्ना
फ़रहत शहज़ाद
दश्त-ए-वहशत ने फिर पुकारा है
फ़रहत शहज़ाद
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