किनारा Poetry (page 5)

कहते हैं हम उधर हैं सितारा है जिस तरफ़

अकबर हमीदी

गुज़र गई है अभी साअत-ए-गुज़िश्ता भी

अजमल सिराज

बुझ गया रात वो सितारा भी

अजमल सिराज

लब-ए-दरिया जो प्यासे मर गए हैं

अजीत सिंह हसरत

कैसे कहीं कि जान से प्यारा नहीं रहा

ऐतबार साजिद

ख़ुद को पाया था न खोया मैं ने

अहमद शनास

सूरज को निकलना है सो निकलेगा दोबारा

अहमद नदीम क़ासमी

दस्त-बस्तों को इशारा भी तो हो सकता है

अहमद ख़याल

चाँद ओझल हो गया हर इक सितारा बुझ गया

अहमद हमदानी

मुझ से पहले

अहमद फ़राज़

यूँ दर्द ने उम्मीद के लड़ से मुझे बाँधा

अहमद फ़क़ीह

सदियों के अँधेरे में उतारा करे कोई

अहमद फ़क़ीह

दरीचे में सितारा जागता है

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

सूरज कोई न कोई सितारा तुलू'अ हो

अफ़सर जमशेद

शब को हर रंग में सैलाब तुम्हारा देखें

अबुल हसनात हक़्क़ी

मेज़ क़लम क़िर्तास दरीचा सन्नाटा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

पा के तूफ़ाँ का इशारा दरिया

अब्दुल मन्नान तरज़ी

हर मसर्रत से किनारा कर लिया

अब्दुल मलिक सोज़

हर मसर्रत से किनारा कर लिया

अब्दुल मलिक सोज़

इक ईमा इक इशारा मर रहा है

अब्दुल अहद साज़

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