ख़ुद को पाया था न खोया मैं ने
बे-कराँ ज़ात किनारा था मुझे
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पस-ए-ख़याल हूँ कितना ज़ुहूर कितना हूँ
नौ-जवानों का क़बीला उस के पीछे चल पड़ा
यहाँ हर लफ़्ज़ मअनी से जुदा है
फूलों में एक रंग है आँखों के नीर का
बाहर इंसानों से नफ़रत है लेकिन
बहुत छोटा सफ़र था ज़िंदगी का
बस इक जहान-ए-तहय्युर से आने वाला है
मैं इकतिशाफ़ की हिजरत बहिश्त से लाया
लम्हा लम्हा रोज़ ओ शब को देर होती जाएगी
अल्लाह वाला एक क़बीला मेरी निस्बत
एक बच्चा ज़ेहन से पैसा कमाने की मशीन
कौन क़तरे में उठाता है तलातुम