बहुत छोटा सफ़र था ज़िंदगी का
मैं अपने घर के अंदर तक न पहुँचा
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एक बच्चा ज़ेहन से पैसा कमाने की मशीन
बग़ैर-ए-जिस्म भी है जिस्म का एहसास ज़िंदा
मैं इकतिशाफ़ की हिजरत बहिश्त से लाया
बस इक जहान-ए-तहय्युर से आने वाला है
ज़माना हो गया है ख़्वाब देखे
ख़ुद को पाया था न खोया मैं ने
सुब्ह-ए-वजूद हूँ कि शब-ए-इंतिज़ार हूँ
वो मेरे अलावा मुझे चाहता है
मैं उस की पहचान हूँ या वो मेरी
शब-ओ-रोज़ नख़्ल-ए-वजूद को नया एक बर्ग-ए-अना दिया
फूलों में एक रंग है आँखों के नीर का