बाहर इंसानों से नफ़रत है लेकिन
घर में ढेरों बच्चे पैदा करते हैं
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
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Friends Poetry
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जिस्म के बयाबाँ में दर्द की दुआ माँगें
मैं बात करने लगा था कि लफ़्ज़ गूँगे हुए
फिर इस के ब'अद पत्थर हो गया आँखों का पानी
लम्हा लम्हा रोज़ ओ शब को देर होती जाएगी
बग़ैर-ए-जिस्म भी है जिस्म का एहसास ज़िंदा
मिरी आँखों में आ दिल में उतर पैवंद-ए-जाँ हो जा
शब-ओ-रोज़ नख़्ल-ए-वजूद को नया एक बर्ग-ए-अना दिया
कौन क़तरे में उठाता है तलातुम
फूलों में एक रंग है आँखों के नीर का
लफ़्ज़ जब उतरा मिरी आँखें मुनव्वर हो गईं
जानकारी खेल लफ़्ज़ों का ज़बाँ का शोर है
तसव्वुर को जगा रक्खा है उस ने