कौन क़तरे में उठाता है तलातुम
और अंतर-आत्मा तक सींचता है
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
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Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Wasi Shah
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फिर इस के ब'अद पत्थर हो गया आँखों का पानी
नौ-जवानों का क़बीला उस के पीछे चल पड़ा
ज़माना हो गया है ख़्वाब देखे
जिस्म के बयाबाँ में दर्द की दुआ माँगें
वो मेरे अलावा मुझे चाहता है
मैं ने भी बच्चों को अपनी निस्बत से आज़ाद किया
मिरी आँखों में आ दिल में उतर पैवंद-ए-जाँ हो जा
मैं उस की पहचान हूँ या वो मेरी
फूल बाहर है कि अंदर है मिरे सीने में
मैं फ़तह-ए-ज़ात मंज़र तक न पहुँचा
रफ़्ता रफ़्ता लफ़्ज़ गूँगे हो गए