पस-ए-ख़याल हूँ कितना ज़ुहूर कितना हूँ
ख़बर नहीं कि अभी ख़ुद से दूर कितना हूँ
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दश्त-ए-उम्मीद में ख़्वाबों का सफ़र करना था
इमरोज़ की कश्ती को डुबोने के लिए हूँ
अल्लाह वाला एक क़बीला मेरी निस्बत
यहाँ हर लफ़्ज़ मअनी से जुदा है
मैं उस की पहचान हूँ या वो मेरी
बग़ैर-ए-जिस्म भी है जिस्म का एहसास ज़िंदा
तसव्वुर को जगा रक्खा है उस ने
फूलों में एक रंग है आँखों के नीर का
ज़माना हो गया है ख़्वाब देखे
बस उस की पहचान यही है
चाँद में दरवेश है जुगनू में जोगी