शब्द Poetry (page 10)

वो हँसते खेलते इक लफ़्ज़ कह गया 'बानी'

राजेन्द्र मनचंदा बानी

'नून-मीम-राशिद' के इंतिक़ाल पर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मेहराब न क़िंदील न असरार न तमसील

राजेन्द्र मनचंदा बानी

कहाँ तलाश करूँ अब उफ़ुक़ कहानी का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ऐ लम्हो मैं क्यूँ लम्हा-ए-लर्ज़ां हूँ बताओ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त

राजेन्द्र नाथ रहबर

बखेड़े

राज नारायण राज़

शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है

रईस अमरोहवी

फिर जो कटती नहीं उस रात से ख़ौफ़ आता है

रहमान हफ़ीज़

कोई नश्शा न कोई ख़्वाब ख़रीद

राही फ़िदाई

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

कटते ही संग-ए-लफ़्ज़ गिरानी निकल पड़े

इक़बाल साजिद

अपनी अना की आज भी तस्कीन हम ने की

इक़बाल साजिद

बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए

इक़बाल माहिर

वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा

इक़बाल अज़ीम

ज़वाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न था और मैं था

इक़बाल अासिफ़

जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'

इक़बाल अशहर

बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का

इक़बाल अशहर

मुझे छेड़ने को साक़ी ने दिया जो जाम उल्टा

इंशा अल्लाह ख़ान

वो अजीब शख़्स था भीड़ में जो नज़र में ऐसे उतर गया

इन्दिरा वर्मा

मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे

इन्दिरा वर्मा

जुदा हो कर समुंदर से किनारा क्या बनेगा

इनआम आज़मी

अपने हिस्से में ही आने थे ख़सारे सारे

इमरान-उल-हक़ चौहान

लोगों के सभी फ़लसफ़े झुटला तो गए हम

इमरान हुसैन आज़ाद

पागल

इलियास बाबर आवान

कम ज़रा न होने दी एक लफ़्ज़ की हुरमत

इकराम मुजीब

मौत सी ख़मोशी जब उन लबों पे तारी की

इकराम मुजीब

रख-रखाव में कोई ख़्वार नहीं होता यार

इफ़्तिख़ार मुग़ल

धुँद

इफ़्तेख़ार जालिब

शगुफ़्ता लफ़्ज़ लिक्खे जा रहे हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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