शब्द Poetry (page 2)

हम

ज़िया जालंधरी

तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ

ज़िया जालंधरी

कितने इम्काँ थे जो ख़्वाबों के सहारे देखे

ज़िया जालंधरी

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

जुनून-ए-अव्वलीं शाइस्तगी थी

ज़ेहरा निगाह

सुनो

ज़ेहरा अलवी

साँप

ज़ीशान साहिल

लफ़्ज़

ज़ीशान साहिल

ख़त

ज़ीशान साहिल

जगह

ज़ीशान साहिल

चीज़ें अपनी जगह तब्दील करना चाहती हैं

ज़ीशान साहिल

अवाम

ज़ीशान साहिल

आँसू की वजह

ज़ीशान साहिल

तंग कमरों में है महबूस फ़ज़ा का मतलब

ज़काउद्दीन शायाँ

महकी शब आईना देखे अपने बिस्तर से बाहर

ज़काउद्दीन शायाँ

वो हर्फ़-ओ-सौत-ओ-सदा

ज़ाहिदा ज़ैदी

तख़्ईल का दर खोले हुए शाम खड़ी है

ज़ाहिदा ज़ैदी

फ़सील-ए-जिस्म गिरा कर बिखर न जाऊँ मैं

ज़ाहिद नवेद

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की

ज़हीर काश्मीरी

कभी कभी कोई चेहरा ये काम करता है

ज़फ़र सहबाई

हर आदमी कहाँ औज-ए-कमाल तक पहुँचा

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ये शहर ज़िंदा है लेकिन हर एक लफ़्ज़ की लाश

ज़फ़र इक़बाल

वो चेहरा हाथ में ले कर किताब की सूरत

ज़फ़र इक़बाल

सुनोगे लफ़्ज़ में भी फड़फड़ाहट

ज़फ़र इक़बाल

इक लहर है कि मुझ में उछलने को है 'ज़फ़र'

ज़फ़र इक़बाल

यहाँ सब से अलग सब से जुदा होना था मुझ को

ज़फ़र इक़बाल

न उस को भूल पाए हैं न हम ने याद रक्खा है

ज़फ़र इक़बाल

मैं ज़र्द आग न पानी के सर्द डर में रहा

ज़फ़र इक़बाल

कोई किनाया कहीं और बात करते हुए

ज़फ़र इक़बाल

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