सुनोगे लफ़्ज़ में भी फड़फड़ाहट
लहू में भी पर-अफ़्शानी रहेगी
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जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता
अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है
लर्ज़िश-ए-पर्दा-ए-इज़हार का मतलब क्या है
लब पे तकरीम-ए-तमन्ना-ए-सुबुक-पाई है
लगता है इतना वक़्त मिरे डूबने में क्यूँ
ज़िंदा रखता था मुझे शक्ल दिखा कर अपनी
आगे बढ़ूँ तो ज़र्द घटा मेरे रू-ब-रू
मक़्बूल-ए-अवाम हो गया मैं
थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते
दर-ए-उमीद से हो कर निकलने लगता हूँ
हवा बदल गई उस बेवफ़ा के होने से
आग का रिश्ता निकल आए कोई पानी के साथ