सुना है वो मिरे बारे में सोचता है बहुत
ख़बर तो है ही मगर मो'तबर ज़्यादा नहीं
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1182) Peoples Rate This
ये ज़मीन आसमान का मुमकिन
रखता हूँ अपना आप बहुत खींच-तान कर
न उस को भूल पाए हैं न हम ने याद रक्खा है
ज़िंदा भी ख़ल्क़ में हूँ मरा भी हुआ हूँ मैं
चमकती वुसअतों में जो गुल-ए-सहरा खिला है
नहीं कि दिल में हमेशा ख़ुशी बहुत आई
सफ़र कठिन ही सही जान से गुज़रना क्या
मुझे ख़राब किया उस ने हाँ किया होगा
यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला
पैदा ये ग़ुबार क्यूँ हुआ है
हवा बदल गई उस बेवफ़ा के होने से
कुछ नहीं समझा हूँ इतना मुख़्तसर पैग़ाम था