शब्द Poetry (page 9)

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

सबा अकबराबादी

मुस्तक़िल अब बुझा बुझा सा है

एस ए मेहदी

ज़ालिम पे अज़ाब हो गया हूँ

रूही कंजाही

यूँ आज अपने-आप से उलझा हुआ हूँ मैं

रूही कंजाही

मुझ बला-नोश को तलछट भी है काफ़ी साक़ी

रिन्द लखनवी

जो सोचता हूँ अगर वो हवा से कह जाऊँ

रियाज़ मजीद

दर्द ग़ज़ल में ढलने से कतराता है

रियाज़ मजीद

शहर-बानो के लिए एक नज़्म

रहमान फ़ारिस

इस समुंदर पे इक इल्ज़ाम ही धर जाना है

रज़्ज़ाक़ अादिल

यूँ तो लिखने के लिए क्या नहीं लिक्खा मैं ने

राज़ी अख्तर शौक़

रोज़ इक शख़्स चला जाता है ख़्वाहिश करता

राज़ी अख्तर शौक़

रंग अब यूँ तिरी तस्वीर में भरता जाऊँ

राज़ी अख्तर शौक़

मैं कहाँ और अर्ज़-ए-हाल कहाँ

राज़ी अख्तर शौक़

जभी तो ज़ख़्म भी गहरा नहीं है

राज़ी अख्तर शौक़

दिन का मलाल शाम की वहशत कहाँ से लाएँ

राज़ी अख्तर शौक़

ऐ सुब्ह-ए-उमीद देर क्या है

राज़ी अख्तर शौक़

वो बर्क़-ए-नाज़ गुरेज़ाँ नहीं तो कुछ भी नहीं

रविश सिद्दीक़ी

एक लग़्ज़िश में दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे

रविश सिद्दीक़ी

शाम-ए-ग़म की है अता सुब्ह-ए-मसर्रत दी है

रौनक़ रज़ा

दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत

रौनक़ नईम

खंडर में दफ़्न हुई हैं इमारतें क्या क्या

रासिख़ इरफ़ानी

ये उम्र गुज़री है इतने सितम उठाने में

राशिद तराज़

कभी यूँ भी करो शहर-ए-गुमाँ तक ले चलो मुझ को

राशिद तराज़

शम्अ' में सोज़ की वो ख़ू है न परवाने में

रशीद शाहजहाँपुरी

लाख चाहा मैं ने पर्दा सामने आया नहीं

रशीद उस्मानी

ये कौन सा सूरज मिरे पहलू में खड़ा है

रशीद क़ैसरानी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

मैं ने काग़ज़ पे सजाए हैं जो ताबूत न खोल

रशीद क़ैसरानी

जुनूँ की फ़स्ल आई बढ़ गई तौक़ीर पत्थर की

रशीद लखनवी

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