लहू Poetry (page 38)

चलते हैं गुलशन-ए-फ़िरदौस में घर लेते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

जो शख़्स भी मिला है वो इक ज़िंदा लाश है

अफ़ज़ल मिनहास

हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है

अफ़ज़ल मिनहास

गहरा सुकूत ज़ेहन को बेहाल कर गया

अफ़ज़ल मिनहास

चुप रहे तो शहर की हंगामा आराई मिली

अफ़ज़ल मिनहास

यूँ इलाज-ए-दिल बीमार किया जाएगा

अफ़ज़ल इलाहाबादी

तेरे जल्वों को रू-ब-रू कर के

अफ़ज़ल इलाहाबादी

जो मिरी आरज़ू नहीं करता

अफ़ज़ल इलाहाबादी

असीर-ए-जिस्म हूँ दरवाज़ा तोड़ डाले कोई

आफ़ताब शम्सी

दीवार-ए-चीन

आफ़ताब इक़बाल शमीम

इक फ़ना के घाट उतरा एक पागल हो गया

आफ़ताब इक़बाल शमीम

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

आफ़ताब इक़बाल शमीम

अपनी कैफ़िय्यतें हर आन बदलती हुई शाम

आफ़ताब इक़बाल शमीम

मक़ाम-ए-शौक़ से आगे भी इक रस्ता निकलता है

आफ़ताब हुसैन

कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं

अफ़सर इलाहाबादी

मौज-दर-मौज हवाओं से बचा लाऊँगा

अफ़रोज़ आलम

जगा जुनूँ को ज़रा नक़्शा-ए-मुक़द्दर खींच

अफ़रोज़ आलम

जगा जुनूँ को ज़रा नक़्शा-ए-मुक़द्दर खींच

अफ़रोज़ आलम

हलाल रिज़्क़ का मतलब किसान से पूछो

अादिल रशीद

जो बन-सँवर के वो इक माह-रू निकलता है

अादिल रशीद

वक़्त की रेत पे

आदिल मंसूरी

सफ़ेद रात से मंसूब है लहू का ज़वाल

आदिल मंसूरी

नज़्म

आदिल मंसूरी

लफ़्ज़ की छाँव में

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

फ़ैज़

आदिल मंसूरी

वो बरसात की शब वो पिछ्ला पहर

आदिल मंसूरी

साँस की आँच ज़रा तेज़ करो

आदिल मंसूरी

हुआ ख़त्म दरिया तो सहरा लगा

आदिल मंसूरी

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

आदिल मंसूरी

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