लहू Poetry (page 2)

रास्ते तीरा सही सीने तो बे-नूर नहीं

ज़िया जालंधरी

ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी

ज़िया जालंधरी

नज़र नज़र से मिलाना कोई मज़ाक़ नहीं

ज़िया फ़तेहाबादी

एक तिलिस्मी खेल

ज़ेहरा निगाह

बॉर्डर-लाइन

ज़ेहरा अलवी

मैं लाख इसे ताज़ा रखूँ दिल के लहू से

ज़ेब ग़ौरी

कुछ दूर तक तो चमकी थी मेरे लहू की धार

ज़ेब ग़ौरी

धो के तू मेरा लहू अपने हुनर को न छुपा

ज़ेब ग़ौरी

अधूरी छोड़ के तस्वीर मर गया वो 'ज़ेब'

ज़ेब ग़ौरी

ठहरा वही नायाब कि दामन में नहीं था

ज़ेब ग़ौरी

शोला-ए-मौज-ए-तलब ख़ून-ए-जिगर से निकला

ज़ेब ग़ौरी

रंग-ए-ग़ज़ल में दिल का लहू भी शामिल हो

ज़ेब ग़ौरी

न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है

ज़ेब ग़ौरी

मुराद-ए-शिकवा नहीं लुत्फ़-ए-गुफ़्तुगू के सिवा

ज़ेब ग़ौरी

मेरा अदम वजूद भी क्या ज़र-निगार था

ज़ेब ग़ौरी

मौज़ू-ए-सुख़न हिम्मत-ए-आली ही रहेगी

ज़ेब ग़ौरी

मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझे

ज़ेब ग़ौरी

है सदफ़ गौहर से ख़ाली रौशनी क्यूँकर मिले

ज़ेब ग़ौरी

है बहुत ताक़ वो बेदाद में डर है ये भी

ज़ेब ग़ौरी

गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में

ज़ेब ग़ौरी

गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत

ज़ेब ग़ौरी

बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है

ज़ेब ग़ौरी

आबला-पाई है महरूमी है रुस्वाई है

ज़रीना सानी

मारा हमें इस दौर की आसाँ-तलबी ने

ज़ाहिदा ज़ैदी

नश्र मुकर्रर

ज़ाहिद मसूद

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

ये कारोबार-ए-चमन इस ने जब सँभाला है

ज़हीर काश्मीरी

हर आदमी को ख़्वाब दिखाना मुहाल है

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

कभी कभी कोई चेहरा ये काम करता है

ज़फ़र सहबाई

तमाम रंग जहाँ इल्तिजा के रक्खे थे

ज़फ़र मुरादाबादी

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