लहू Poetry (page 3)

कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

बढ़े कुछ और किसी इल्तिजा से कम न हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

बात मेहंदी से लहू तक आ गई

ज़फ़र कलीम

ये हाल है तो बदन को बचाइए कब तक

ज़फ़र इक़बाल

बदन का सारा लहू खिंच के आ गया रुख़ पर

ज़फ़र इक़बाल

यूँ तो किस चीज़ की कमी है

ज़फ़र इक़बाल

यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला

ज़फ़र इक़बाल

मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग लेता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

कोई किनाया कहीं और बात करते हुए

ज़फ़र इक़बाल

जो बंदा-ए-ख़ुदा था ख़ुदा होने वाला है

ज़फ़र इक़बाल

ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत

ज़फ़र इक़बाल

एक ही नक़्श है जितना भी जहाँ रह जाए

ज़फ़र इक़बाल

जब भी वो मुझ से मिला रोने लगा

ज़फ़र हमीदी

रौशनी परछाईं पैकर आख़िरी

ज़फ़र गोरखपुरी

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

शो'ले से चटकते हैं हर साँस में ख़ुशबू के

ज़फ़र गौरी

सात रंगों से बनी है याद ताज़ा

ज़फ़र गौरी

ख़्वाब रंगों से बनी है याद ताज़ा

ज़फ़र गौरी

चल पड़े हम दश्त-ए-बे-साया भी जंगल हो गया

ज़फ़र गौरी

बदन से रूह तलक हम लहू लहू हुए हैं

ज़फ़र अज्मी

वादी-ए-नील

यूसुफ़ ज़फ़र

ख़बर

यूसुफ़ ज़फ़र

हम गरचे दिल ओ जान से बेज़ार हुए हैं

यूसुफ़ ज़फ़र

इंतिबाह

यूसुफ़ तक़ी

हर लहज़ा मिरी ज़ीस्त मुझे बार-ए-गराँ है

यूसुफ़ तक़ी

वतन

यूसुफ़ राहत

उन्हें क़ैद करने की कोशिश है कैसी

युसूफ़ जमाल

सोचा कि वा हो सब्ज़ दरीचा जो बंद था

युसूफ़ जमाल

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