लहू Poetry (page 5)

आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है

वाली आसी

मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ

वाजिद अमीर

बेचते क्या हो मियाँ आन के बाज़ार के बीच

वाजिद अमीर

जो दश्त-ए-तमन्ना में हर वक़्त भटकता है

वाहिद प्रेमी

आज फिर सर-ए-मक़्तल दे के ख़ुद लहू हम ने

वाहिद प्रेमी

सहराओं में दरिया भी सफ़र भूल गया है

वहीद अख़्तर

आग अपने ही दामन की ज़रा पहले बुझा लो

वहीद अख़्तर

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

ख़ाके

वहीद अहमद

एल्बम

वहीद अहमद

वक़्त की ताक़ पे दोनों की सजाई हुई रात

विपुल कुमार

बहुत दिनों में हम उन से जो हम-कलाम हुए

वारिस किरमानी

यास ओ उमीद

उरूज क़ादरी

तुम हो जो कुछ कहाँ छुपाओगे

उम्मीद फ़ाज़ली

तुम हो जो कुछ कहाँ छुपाओगे

उम्मीद फ़ाज़ली

हम तिरा अहद-ए-मोहब्बत ठहरे

उम्मीद फ़ाज़ली

हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

आईना-ए-वहशत को जिला जिस से मिली है

उम्मीद फ़ाज़ली

ताइर-ए-ख़ुश-रंग को बे-बाल-ओ-पर देखेगा कौन

तुफ़ैल अहमद मदनी

मैं ख़ुद अपना लहू पीने लगा हूँ

त्रिपुरारि

मुस्कुराते हुए फूलों का अरक़ सब का है

तिलक राज पारस

हर इक के दुख पे जो अहल-ए-क़लम तड़पता था

तिफ़्ल दारा

क्या ये सच है कि ख़िज़ाँ में भी चमन खिलते हैं

तौसीफ़ तबस्सुम

मरते मरते रौशनी का ख़्वाब तो पूरा हुआ

तौसीफ़ तबस्सुम

इक तीर नहीं क्या तिरी मिज़्गाँ की सफ़ों में

तौसीफ़ तबस्सुम

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

दिल की बात न मानी होती इश्क़ किया क्यूँ पीरी में

तौसीफ़ तबस्सुम

आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे

तौसीफ़ तबस्सुम

सदियों लहू से दिल की हिकायत लिखी गई

तसनीम फ़ारूक़ी

क्या क्या मज़े से रात की अहद-ए-शबाब में

मीर तस्कीन देहलवी

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