लहू Poetry (page 8)

अश्क-ए-हसरत में क्यूँ लहू है अभी

सिराज लखनवी

है जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में तिरी तीर की आवाज़

सिराज औरंगाबादी

ग़म ने बाँधा है मिरे जी पे खला हाए खला

सिराज औरंगाबादी

नक़्शा बदल चुका है

सिदरा सहर इमरान

ना-ख़लफ़ मिज़ाज की मुसद्दक़ा तस्लीमात

सिदरा सहर इमरान

मुर्दा लोगों की तस्वीरी नुमाइश

सिदरा सहर इमरान

इक लहू की बूँद थी लेकिन कई आँखों में थी

सिद्दीक़ मुजीबी

एक बे-मंज़र उदासी चार-सू आँखों में है

सिद्दीक़ मुजीबी

बे-कराँ समझा था ख़ुद को कैसे नादानों में था

सिद्दीक़ मुजीबी

हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

ये रोज़ ओ शब का तसलसुल रवाँ-दवाँ ही रहा

सिद्दीक़ शाहिद

न देखा जामा-ए-ख़ुद-रफ़्तगी उतार के भी

सिद्दीक़ शाहिद

फ़ुग़ान-ए-रूह कोई किस तरह सुनाए उसे

सिद्दीक़ शाहिद

आँधी चली तो गर्द से हर चीज़ अट गई

सिब्त अली सबा

सोए पानी के तले डूबे हुए पैकर लिखें

सिब्त अहमद

मालूम नहीं क्यूँ

शोरिश काश्मीरी

हुजूम-ए-यास में लेने वो कब ख़बर आया

शोला अलीगढ़ी

आओ कि अभी छाँव सितारों की घनी है

शोहरत बुख़ारी

दरों को चुनता हूँ दीवार से निकलता हूँ

शोएब निज़ाम

दिल दिया है हम ने भी वो माह-ए-कामिल देख कर

शेर सिंह नाज़ देहलवी

वक़्त आफ़ाक़ के जंगल का जवाँ चीता है

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

मस्ती अज़ल की शहपर-ए-जिबरील हो गई

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

आसमानों से उतर कर मिरी धरती पे बिराज

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

गुल उस निगह के ज़ख़्म-रसीदों में मिल गया

ज़ौक़

रिंद-ए-ख़राब-हाल को ज़ाहिद न छेड़ तू

ज़ौक़

क़स्द जब तेरी ज़ियारत का कभू करते हैं

ज़ौक़

जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में ग़लताँ छोड़ कर

ज़ौक़

कब निगह उस की इश्वा-बार नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

शरार-ए-जाँ से गुज़र गर्दिश-ए-लहू में आ

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

रक़ाबतों की तरह से हम ने मोहब्बतें बे-मिसाल की हैं

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

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