पल Poetry (page 8)

इक शोर समेटो जीवन भर और चुप दरिया में उतर जाओ

साबिर वसीम

आज की रात

साबिर दत्त

याद आते हो किस सलीक़े से

रूही कंजाही

जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए

रियाज़ लतीफ़

रक़्स

रिफ़अत नाहीद

ख़ुद में झाँका तो अजब मंज़र नज़र आया मुझे

रियाज़ मजीद

नींद आँखों में मुसलसल नहीं होने देता

रेहाना रूही

कितने नायाब थे लम्हे जो वहाँ पर गुज़रे

रज़िया हलीम जंग

कुछ लोग समझने ही को तयार नहीं थे

राज़ी अख्तर शौक़

जिस पल मैं ने घर की इमारत ख़्वाब-आसार बनाई थी

राज़ी अख्तर शौक़

सिलसिले ये कैसे हैं टूट कर नहीं मिलते

रउफ़ ख़लिश

न जाने कब बसर हुए न जाने कब गुज़र गए

रशक खलीली

ये जो मेरे अंदर फैली ख़ामोशी है

राशिद क़य्यूम अनसर

वो और लोग थे जो रास्ते बदलते रहे

राशिद अनवर राशिद

सिलसिला-ए-ज़िन्दगी

राशिद आज़र

मुंतज़िर आँखों में जमता ख़ूँ का दरिया देखते

राशिद आज़र

टूट जाए तो कहीं उस को भी चैन आता है

रशीदा सलीम सीमीं

इक ख़याल-अफ़रोज़ मौज आई तो थी

राशिदा माहीन मलिक

लाख चाहा मैं ने पर्दा सामने आया नहीं

रशीद उस्मानी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

मिरी जबीं का मुक़द्दर कहीं रक़म भी तो हो

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

है शौक़ तो बे-साख़्ता आँखों में समो लो

रशीद क़ैसरानी

दरिया को अपने पाँव की कश्ती से पार कर

रशीद निसार

लो शुरूअ नफ़रत हुई

रमेश कँवल

बहारें और वो रंगीं नज़ारे याद आते हैं

राम कृष्ण मुज़्तर

हर जाद-ए-शहर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो जिसे अब तक समझता था मैं पत्थर, सामने था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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