गंतव्य Poetry (page 31)

नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे

फ़ुज़ैल जाफ़री

कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं

फ़ुज़ैल जाफ़री

कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं

फ़ुज़ैल जाफ़री

उन का मंशा है न फैले ख़स-ओ-ख़ाशाक में आग

फ़ितरत अंसारी

इंतिख़ाब-ए-निगह-ए-शौक़ को मुश्किल भी नहीं

फ़ितरत अंसारी

हुस्न-ए-फ़ितरत के अमीं क़ातिल-ए-किरदार न बन

फ़ितरत अंसारी

अब क्या बताऊँ शहर ये कैसा लगा मुझे

फ़िरदौस गयावी

फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए

फ़िराक़ गोरखपुरी

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

दिल चोट सहे और उफ़ न करे ये ज़ब्त की मंज़िल है लेकिन

फ़िगार उन्नावी

छुप गया दिन क़दम बढ़ा राही

फ़िगार उन्नावी

तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया

फ़िगार उन्नावी

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता

फ़िगार उन्नावी

चला हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ तो शादमाँ हो कर

फ़िगार उन्नावी

आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी

फ़िगार उन्नावी

तामीर-ए-नौ क़ज़ा-ओ-क़दर की नज़र में है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

अस्बाब-ए-ज़िंदगी की हर इक चीज़ है गराँ

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

है जो ख़ामोश बुत-ए-होश-रुबा मेरे बाद

फ़ज़ल हुसैन साबिर

अब आ गए हो तो रफ़्तगाँ को भी याद रखना

फ़य्याज़ तहसीन

न तुम मेरे न दिल मेरा न जान-ए-ना-तवाँ मेरी

फ़य्याज़ हाशमी

ज़मीं से रिश्ता-ए-दीवार-ओ-दर भी रखना है

फ़ातिमा हसन

क़ुर्बतों में फ़ासले कुछ और हैं

फ़ातिमा हसन

मैं अपने दिल की तरह आइना बना हुआ हूँ

फ़रताश सय्यद

मालूम करो

फर्रुख यार

राह-ए-गुम-कर्दा सर-ए-मंज़िल भटक कर आ गया

फ़र्रुख़ जाफ़री

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